बुंदेलखंड की विलुप्त होती लोक कला, संस्कृति एवं लोकाचारों को पुनर्स्थापित Restore करने के लिए प्रोत्साहित करना एवं पुनर्स्थापित करने में जनमानस का सहयोग करना। अपनी बोली अपनी भाषा से विमुख होते लोगों को अपनी बोली के प्रति प्रोत्साहित करना एवं अन्य प्रदेशों की भांति कक्षा 1 से अपनी बोली लोक भाषा को पाठ्यक्रम में अनिवार्य करने हेतु संघर्ष ।  

बुन्देली झलक की कोशिश है कि बुन्देलखण्ड  की लोक कला ,संस्कृति ,परम्पराओं एवं साहित्य की सम्पूर्ण जानकारी और बुन्देलखण्ड के लोक कलाकार (गायक, वादक) , साहित्यकार, बुद्धजीवी, सामाजसुधारक, संस्कृतिकर्मी आदि  का जीवन परिचय एवं उनके उत्कृष्ट कार्यों को वेबसाईट के माध्यम से आम जानमानस तक पहुचाना ।

बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति, साहित्य, परम्पराएं, लोक जीवन एवं  लोक पर्व-त्योहारों, बुन्देली किस्सा -कहानियों, बुन्देलखण्ड की  लोक कथाएं , लोक गाथाएं , लोक देवता आदि  की विस्तृत शोधपरक जानकारी वेबसाईट मे उपलब्ध है ।

बुन्देली झलक बुन्देलखण्ड के वरिष्ठ लोक कलाकार (गायक, वादक) , साहित्यकार , बुद्धजीवी , समाजसुधारक, संस्कृतिकर्मी आदि को पद्म पुरस्कार और अन्य राजकीय एवं राष्ट्रीय पुरस्कार हेतु  Nominate (मनोनीत) करना । 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार छत्रसाल बुन्देलखण्ड  विश्वविद्यालय छतरपुर एवं  बुन्देलखण्ड  विश्वविद्यालय झांसी के विश्वविद्यालय परिसर एवं संबद्ध महाविद्यालयों के परास्नातक हिंदी (M.A.  हिंदी)  पाठ्यक्रम के लिए एवं बुन्देली लोक कला-संस्कृति शोध के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी साहित्य बुन्देली झलक वेबसाईट पर उपलब्ध है  ।

बुन्देलखण्ड की लोक संस्कृति का परिचय

बुन्देली झलक बुन्देलखण्ड के रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, कला और संस्कृति की झांकी है ।  प्रत्येक  देश की कला और सांस्कृति उसकी पहचान होती है। भारत के हर प्रदेश में कला और सांस्कृति की अपनी एक विशेष शैली और पद्धति है जिसे लोक कला के नाम से जाना जाता है। लोककला के अलावा भी परम्परागत कला का एक अन्य रूप है जो गांव देहात के लोगों में प्रचलित है। इसे जनजातीय कला के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

भारत की लोक और जनजातीय कलाएं बहुत ही पारम्परिक और साधारण होने पर भी इतनी अधिक सजीव और प्रभावशाली हैं  कि आसानी से जन मानस को अपनी ओर आकर्षित करती है। इसमे स्थिति और अवस्था के साथ- साथ अनेको प्रयोग होते रहते है जिसके परिणाम स्वरूप समय समय पर कला और  संस्कृति पर हल्के फुल्के बदलाव आते रहते है पर वे  कभी अपनी जडें नही छोड़ते ।

प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण हमारी अनेक पारम्परिक कला और संस्कृति विलुप्त हो चुकी है और कुछ विलुप्त होने की कगार पर है। बुन्देली झलक इन्ही विलुप्त होती कला ,संस्कृति और परंपराओं को बचाने और समस्त जन मानस तक पहुचाने  का एक प्रयास है ताकि कला और संस्कृति से जुडे बुनियादी, सांस्कृतिक और सौंदर्यपरक मूल्यों तथा अवधारणाओं को जनमानस में जीवंत रखा जा सके।

बुन्देलखण्ड भोगोलिक और सांस्कृतिक विविधताओं का संगम स्थल है। बुन्दलेखण्ड में जो एकता और समरसता है  उसके कारण यह क्षेत्र विशेष माना जाता है। अनेक शासकों के शासन का इतिहास होने के बावजूद भी बुंदेलखंड की सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत आज भी जीवित है।

इतिहास, संस्कृति और भाषा से बुन्देलखण्ड एक विस्तृत और व्यापक प्रदेश है। बुन्देलखण्ड मे  त्यौहारों  की  अनुपम छटा  है। सर्दी, गर्मी, बरसात किसी भी मौसम में यहां अनेकों त्यौहार होते हैं और जनमानस हर्षोल्लास के साथ इन त्योहारों को मनाता है। सचमुच यहां कण- कण मे भगवान है और हर गली मे पूजा धाम है।

अतीत में बुन्देलखण्ड शबर, कोल, किरात, पुलिंद और विषादों का प्रदेश था। आर्यो के मध्यप्रदेश में आने पर जनजातियों ने प्रतिरोध किया था। वैदिक काल से बुंदेलों के शासनकाल तक दो हजार वर्षो में इस प्रदेश पर अनेक जातियों और राजवंशों ने शासन किया है और अपनी सामाजिक सांस्कृतिक चेतना से इन जातियों के मूल  संस्कारों  को  प्रभावित  किया  है। लेकिन बुंदेलखंड आज भी तटस्थ है।

किसी भी देश-प्रदेश की पहचान उसकी लोककला और संस्कृति होती है और उस कला और संस्कृति को संरक्षण देना और उसे समृद्ध बनाने में समाज का हाथ होता है। बुन्देलखंड की बहुत सी ऐसी लोक कलायें हैं जो समय और आधुनिकता के कारण कुछ विलुप्त हो चुकीं हैं और कुछ विलुप्त होने की कगार पर है उन लोक कलाओं को बचाने के लिए और उन्हें सुरक्षित एवं संरक्षित करने के लिए उन कलाओं का फिल्मांकन करके उन्हें सुरक्षित किया जा सकता है और कुछ ऐसी लोक कलायें हैं जो विलुप्त हो चुकी है उन्हें पुनः जीवंत करने के लिए कुछ ऐसे तरीके अपनाए जाएं ताकि उन्हें पुनः प्राण प्रतिष्ठित किया जा सके।

बुंदेली लोक कलाओं का उद्भव और विकास की प्रक्रिया ने कैसे-कैसे विस्तार किया। किन-किन पड़ाओं से गुजरते हुए किन -किन प्रयोगों से होते हुए आज बुंदेली का यह स्वरूप जो हमारे सामने है। इसे कैसे सुरक्षित किया गया जाय ताकि हमारी पहचान युगों-युगों तक बनी रहे।